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मुरुदेश्वर मंदिर की सैर!- अनोखे रहस्य के साथ!

 नमस्ते ब्लॉग मेंबर्स 🙏🏻 आज आपको ले चलती हूँ मुरुदेश्वर मंदिर की सैर पे | मुरुदेश्वर भगवान शिव को समर्पित किया गया है |


source :google

ये कर्नाटक राज्य में पड़ता है |कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में एक क़स्बा है |यहाँ भगवान शिव की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ती स्थित है |

यह मंगलुरु से 164 किलोमीटर दूर पड़ता है |यह एक धार्मिक स्थल जहाँ पर्यटक अधिक मात्रा में उस मूर्ती को निहारने आते हैँ |यह मन्दिर समुद्र तट के किनारे बना है जो की अपने आप में इस जगह को खूबसूरत बनाता है |

भगवान शिव की जो मूर्ती है वो करीब 123 फ़ीट ऊँची है |इसे इस दिशा में बनाया गया है कि सूरज की किरणे हमेशा इसपे पडती रहे और तब ये चमकती है |

यह मन्दिर को बनाने में 5 करोड़ की लागत आयी थी |मुरुदेश्वर मन्दिर में भगवान शंकर का आत्मलिंग स्थापित है |इस मन्दिर में 20 राजगोपुरम है |20 फ्लोर है जिससे लिफ्ट से ऊपर पंहुचा जा सकता है |ऊपर जाके समुद्र का नज़ारा बहुत सुन्दर होता है |

मुरुदेश्वर मन्दिर का रहस्य :[पौराणिक सन्दर्भ ]

इस मन्दिर के पीछे एक कथा है |जो की रावण और शिव जी के बीच में है |यह तो सबको पता है की रावण शिव भक्त थे |बात रामायण काल की है |

रावण ने अमर होने के लिए शिव से प्रार्थना की और बोला कि उसे आत्मलिंग चाहिए |शंकर भगवान ने प्रस्सन होके रावण को आत्मलिंग दिया और कहा कि उसे वह लंका ले जाके स्थापित कर दे |शिव जी ने कहा कि उसे एक बात का ध्यान रखना होगा कि अगर रास्ते में उसने वो आत्मलिंग धरती पे रख दिया तो वो वही स्थापित हो जायेगा |रावण आत्मलिंग को पाकर खुश था और उसे लंका ले जा रहा था |

लेकिन जब विष्णु जी को यह बात पता चली तो वे भगवान गणेश के पास गए और रावण को किसी तरह रोकने के लिए बोले |

जब रावण गोकर्णा पंहुचा तब तक सूरज ढल चुका था जो कि भगवान विष्णु कि एक चाल थी |उस समय रावण जो कि हमेशा सुबह शाम पूजा किया करते थे समझ नहीं पाया कि पूजा कैसे की जाये |

तब उन्हें वहा भगवान गणेश मिले जिन्होंने ब्राह्मण वेश धारण किया हुआ था |उस ब्राह्मण ने रावण की पूजा करने और आत्मलिंग पकड़ने में उसकी मदद की और रावण बोला की गलती से भी उसे ज़मीन पे na रखे |लेकिन जब तक रावण अपनी पूजा खत्म करते तब तक आत्मलिंग ज़मीन पे आ चुका था |

और रावण ने देखा की वो ब्राह्मण भी वहा से जा चुका था और सूरज भी निकल चुका था |अब रावण समझ चुका था की ये एक चाल थी |

आवेश में आकर रावण ने उस आत्मलिंग को नष्ट करने की कोशिश की |लेकिन आत्मलिंग को कुछ नहीं हुआ |लेकिन थोड़ी चोट लगने पे अब उस लिंग का रूप गाय के कान जैसा दिखने लगा था इसलिए उसे गोकर्णा कहते है |

लिंग के ऊपर का भाग सजजेश्वर में जा गिरा जिसे वामदेव लिंग कहा जाता है |उसका कपड़ा 32 मील दूर जा गिरा कंदुक की पहाड़ी जो कि समुद्र किनारे है |उसने अघोरा का रूप लिया मुरुदेश्वर में | जो धागा था वो धरेश्वर में गिरा जो कि तत्पुरुष लिंग है |

तो ये थी आत्मलिंग कि कहानी और मुरुदेश्वर में जो अघोरा है वो शिव है जिन्हे पूजा जाता है |

ये भी पढ़िए :

दुनिया की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा कैलाशनाथ महादेव है जोकि नेपाल में है |

राजस्थान के नाथद्वारा में दुनिया की चौथी सबसे ऊँची प्रतिमा बनायीं गई है |

गुजरात के वड़ोदरा में भगवान शिव की प्रतिमा है जिसकी लम्बाई 120 फ़ीट है |


शिवजी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ 🌹🙏🏻🕉️

वीभत्स हूँ विभोर हूँ..

मैं समाधी में ही चूर हूँ..

मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ..||

घनघोर अंधेरा ओढ़ के...

मैं जन जीवन से दूर हूँ....

शमशान में हूँ नाचता..

मैं मृत्यु का गुरुर हूँ..

मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ..||

साम -दाम तुम्ही रखो..

मैं दंड में संपूर्ण हूँ..

मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ..||

चीर आया चरम में...

मार आया "मैं "को मैं..

"मैं ", "मैं" नहीं..

"मैं "भय नहीं..

मैं शिव हूँ... मैं शिव हूँ.. मैं शिव हूँ..||

इसी के साथ बोलिये ॐ नमः शिवायः 🙏🏻

इसी के साथ ब्लॉग के अंत में आ गए है दोस्तों |धन्यवाद मिलते है अगले ब्लॉग में |




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