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विष्णु भगवान के अवतार : शुभ बृहस्पतिवार

 नमस्ते दोस्तों, आज हम रूबरू होंगे विष्णु भगवान की कुछ अद्भुत कथाओं से | इस ब्लॉग में हम उनके अवतारों के बारे में बात करेंगे |


भगवान विष्णु :

भगवान विष्णु भक्तों के दिल में बसते हैँ |नारायण के जितने ही गुणगान कर लें उतने ही कम हैँ |भगवान विष्णु ब्रह्मण्ड के रक्षक माने जाते हैँ |ब्रह्मा, विष्णु और शिव मिलकर त्रिदेव कहलाते हैं |

विष्णुजी को चार भुजाओं वाला और गुलाबी कमल पर आसीन दिखाया जाता है |उनके एक हाथ में शंख रहता है जो पवित्र ध्वनि ॐ का प्रतीक है | दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र रहता है  जो समय के चक्र तथा नेक जीवन जीने की याद दिलाता है |तीसरे हाथ में कमल का पुष्प है जो गौरवशाली अस्तित्व का सूचक है |उनके चौथे हाथ में गदा रहती है |

बहुत तेज़ गति से उड़ने वाला गरुड़ उनका वाहन है |उन्हें अधिकतर अपने निवास क्षीरसागर में कुंडली मारे शेषनाग पर आराम करते दिखाया जाता है | विष्णु के दस अवतार हैं | सबसे लोकप्रिय राम और कृष्ण हुए हैं | विष्णु भगवान को अपना दसवा  अवतार लेना बाकी है| उनका दसवा अवतार तब होगा जब दुनिया में अधर्म पूरी तरह से बढ़ जाएगा |


सोजन्य : गूगल 

कहा जाता है की विष्णु पाताल लोक के स्वामी हैं | शिव पुराण के अनुसार जब शिवजी अपने घुटनों में अमृत मल रहे थे तब भगवान विष्णु का जन्म हुआ | जबकि कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार शिवजी विष्णु से जन्मे थे |

इसी प्रकार विष्णु जी की नाभि से ब्रह्मा और माथे से भगवान शिव का जन्म हुआ था |

मत्स्य अवतार की कहानी :

एक बार विष्णु जी ने घोषणा की कि जब पृथ्वी पर संकट आएगा तब मैं किसी ना किसी रूप में पृथ्वी पर आकर वहां के लोगों की रक्षा करूँगा |

एक दिन जब ब्रह्मा जी सो रहे थे तभी घोड़े के सर वाले हायग्रेव नामक अश्विनी उसके सिरहाने से पवित्र वेद चुरा लिया |उसने उन वेदों को गहरे समुद्र में छिपा दिया |ब्राह्मजी को ब्रह्माण्ड की रचना करने के लिए वेदों का अध्ययन करना था | वे बहुत परेशान हो गए और सहायता मांगने विष्णु भगवान के पास पहुंचे |

भगवान विष्णु बे मछली का रूप धारण किया और समुद्र में डुबकी लगाकर वेद वापस लें आये | उन्होंने हैयग्रीव से भीषण लड़ाई की लेकिन उन्होंने उस असुर को मार दिया और वेद वापस लें आये | ब्रह्मा ने उनके प्रति बहुत आभार जताया और वेदों को पढ़ना शुरू कर दिया | भगवान विष्णु के मछली रूप को ही मत्स्य अवतार कहते हैं |



रोचक कथा :

एक बार लक्ष्मी जी विष्णु जी से नाराज़ होकर पृथ्वी पर आकर रहने लगी |विष्णु जी उन्हें मनाने धरती पर आये |lस समय लक्ष्मी जी गोदावरी नदी के किनारे आश्रम में रहती थी |विष्णुजी शेषाद्री नदी के पास एक पहाड़ी पर रहने लगे |

भगवान शिव और ब्राह्मजी गाय और बछड़े का रूप लेकर धरती पर आए और चोला राजा के यहाँ रहने लगे |गवाला इन दोनों को उसी पहाड़ी पर ले जाता जहाँ विष्णुजी रहते थे |ब्राह्मजी गाय के रूप में सारा दूध विष्णुजी को पीला देते थे | ये बात गवाले को समझ नहीं आयी | एक दिन उसने गाय का पीछा किया और जान ने की कोशिश की कि पहाड़ी में कौन रहता है | इसलिए उसने पहाड़ी पे कुल्हाड़ी चला दी जिससे विष्णुजी पे प्रहार हो गया |और उनके खून बहने लगा | खून रोकने के लिए विष्णुजी वरहस्वामीजी की समाधी पे जा पहुंचे | इसी घटना के बाद वाराहा की पूजा होने लगी | वाराहा स्वामीजी सूअर के रूप में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार हैं |


विष्णु गायत्री मंत्र :

ॐ श्री वैष्णवे च विदमहें,

वासुदेवाया धीमहि | तन्नो विष्णु : प्रचोदयात ||

अर्थ :

हे भगवान विष्णु, मुझे उच्च बुद्धि प्रदान करें और मेरे मन को प्रकाशित करें |

अगले ब्लॉग में कुछ और रोचक जानकारी के साथ  मिलते हैं | धन्यवाद 🙏🏻

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